Friday, May 3, 2013

सौन्दर्यान्वेषण करती कलाकृतियां


कालिदास कला सौन्दर्य के महाकवि हैं। उनकी काव्य उपमाओं पर जाएं तो लगेगा वहां प्रकृति और जीवन के विविध रूपो की एकरूपता है। सौन्दर्य और प्रेम का गहरा द्वन्द उनके लिखे में है परन्तु यह ऐसा है जिसे भाषा भर से ही नहीं बांचा जा सकता। संवेदना के गहन आकाश में उसे देखा जा सकता है। शब्द-शब्द चित्र जो वहां है!  महाकवि का तमाम लिखा दृश्यमय है। इसीलिए तो उनके काव्य से प्रेरणा पा चित्रकारों ने सदा ही अपने को सिरजा है। जवाहर कला केन्द्र में  पिछले दिनों कवि, चित्रकार पूर्ण चन्द्र किशन के चित्रों का जब आस्वाद किया तो लगा कालिदास की काव्य कहन कला को वह कैनवस पर रूपान्तरित करते हैं। प्रेम और सौन्दर्य को उनके रंग और रेखाओ में गंहरे से अनुभूत किया जा सकता है। यह बात अलग है कि इधर उन्होंने सामयिक संदर्भों को सहेजते बहुत कुछ अलग भी बनाया है। इन सामयिक संदर्भों में गोधरा कांड है, नारी उत्पीड़न है और तमाम वह सब है जिनसे उनका कला मन उद्वेलित होता रहा है परन्तु महत्वपूर्ण यह है कि तमाम इन सबमें भी भावात्मकता और रंग-रेखाओं की मूर्त-अमूर्त शास्त्रीयता है। 
बहरहाल, पूर्णचन्द्र किषन के चित्रों, उनके बनाए स्कल्पचर देखते यह अहसास भी होता है कि उनकी कला निर्मितियां में सांगीतिकता के साथ काव्य संवेदना के गहरे मर्म है। इसीलिए कईं चित्रों में रंगो की बरती उनकी भाषा सहज बांची जा सकती है। माने वहां रेखाओं से सृजित आकृतियां है परन्तु यह नहीं भी होती तो चित्रों का अर्थ स्पष्ट समझ आता है। धूसरित रंगों में रेखाओं की वह अद्भुत लय जो अंवेरते हैं! लाल, पीले रंगों के धब्बे आकृतियों में हैं परन्तु  वहां अनुभूतियों, स्वपन्न और यथार्थ का गजब का मेल है। उनकी कलाकृतियों का अजन्ता की कला के साथ ही समृद्ध भारतीय षिल्प और मूर्तिकला के साथ ही लोक कलाओं से गजब का नाता लगता है।  कालिदास, भवभूति सरीखे संस्कृत महाकवियों की अनुगूंज तो हर ओर, हर छोर उनकी कलाकृतियो ंमें है ही। इसीलिए मेघदूत, रघुवंश के कथा प्रसंगों से प्रेरणा ले उनका कैनवस बहुतेरे दृश्यों में जीवंत होता हमसे जैसे संवाद भी करता है। कहूं, संस्कृत महाकाव्यों के छंदों की स्मृतियां उनकी कलाकृतियों में रची-बसी हैं तो सौन्दर्य और उदात्त प्रेम की मधुर अर्थध्वनियां भी वहां है। पूर्णचन्द्र किषन के चित्रों का आस्वाद करते परम्परा पोषण के अंतर्गत राजा रवि वर्मा याद आते हैं, महादेवी का स्मरण होता है और पौराणिक, सांस्कृतिक आख्यान भी आंखों के समक्ष औचक ही तैरते हैं परन्तु महत्वपूर्ण यह है कि इनसबमें स्वयं उनकी आधुनिक दीठ और मौलिकता है। माने वह हमारी संस्कृति और परम्पराओं को कला में जीते तो हैं परन्तु उन्हें अपने तई समय के साथ रंग-रेखाओं से संस्कारित भी करते हैं। सौन्दयात्मक गुणों से लबरेज उनके चित्रों में लयबद्ध रेखाओं का गत्यात्मक प्रवाह है। रंगाकंन के साथ रेखांकन भी भावदर्षी, सजीव है। कहें, उनकी कलाकृतियों में स्वयं उनके प्रकट हुए आंतरिक विचारों को पढ़ा जा सकता है।
दृष्य कला का आधार क्या है? रंग-रेखा, सतह ही तो है! इनका तादात्म्य यदि सजग, सचेत रहकर कलाकार करे तो भावपूर्ण चित्रसृष्टि स्वयमेव ही हो जाती है। पूर्णचन्द्र किषन यही करते हैं। बहुरंगी कला दृष्टि मंे वह बीते हुए सौन्दर्य के प्रति अपार आस्था जताते कलाकृतियों में अपने को ही रचते हैं। हर बार। बार-बार। पूर्वगामी कलाकारों का उन्होंने अपनी कलाकृतियांे में शास्त्रबद्ध अनुकरण आधुनिता के आग्रह के साथ किया है। उनकी कला बहुपढि़त भावना से उपजी चैतन्य की कला है। इसीलिए वह जो बनाते हैं वह भावस्पर्षी है। उनकी कलाकृतियां को देखते गौर करेंगे तो पाएंगे-आकृतियां हैं तो वह मन को सुकून देती हुई है और अर्धमूर्ताकार भी है तो उनमें कहीं कोई कथा, सामयिक संदर्भ, आख्यान ध्वनित हो रहा है। कलाकृतियों से रू-ब-रू होते औचक यह भी लगता है, उनकी कला सौन्दर्य का गहन अन्वेषण है।

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