Saturday, November 15, 2014

छायांकन कला की सौन्दर्य लय


सौन्दर्य की सुरम्य संवेदना 
सभी छाया चित्र : अजय राठौड़ 
दृष्य से बड़ी अदृष्य की सत्ता होती है। मन मस्तिष्क पर प्रायः उस अदीठे का ही तो प्रभाव पड़ता है जिसमें दिखे का अर्थ छुपा होता है। कलाएं इसीलिए तो मौन की अभिव्यक्ति कही जाती है। छायांकन कला है, बषर्ते उसमें मौन मुखरित हो। अदृष्य की लय छायाकार संजोए। दृष्य की संवेदना के मर्म में वह जाए। कुछ समय पहले जब अजय सिंह राठौड़ के छायाचित्रों का आस्वाद किया तो लगा, वह दृष्य में निहित अदृष्य के मर्म को अपने तई रचते हैं। औचक! बारम्बार।
बहरहाल, अजय के छायाचित्रांे की बड़ी विषेषता है प्रकृति में निहित सौन्दर्य की छायांकन सूझ से की गई व्यंजना। उनके छायाचित्रों में राजस्थान सर्वथा भिन्न रूप में दिखाई देता है। पहाड़, नदी और हरितिमा से आच्छादित धरित्री का राजस्थान! इसलिए कि उंघता पहाड़, बल खाती नदी, सरोवर और उसमें तैरते कमल, किले-महल और झरोखों से झांकती सुरम्य दीठ को उन्होंने कैमरे से संजोया है। अजय के छायांकन किले-महलों में पसरे मौन की मुखर अभिव्यक्ति है। छायाचित्रों का आस्वाद करते औचक रूसी चित्रकार रोरिक के हिमालय चित्रों की याद आती है। रोरिक ने हिमालय के प्रकृति रंगों को अवंेरा है तो अजय ने राजस्थान के किले-महलों के पाषाणों पर पड़ती धूप, छांव और अस्त होते सूर्य की की संवेदना का जैसे छायाचित्रों में गान किया हैं।
सुरम्य दीठ- भैसंरोडगढ़
यह है तभी तो बूंदी के सुख महल के एक छायाचित्र में आसमान की परछाई के साथ जैत सागर झील के सौन्दर्य की सुरम्य संवेदना का उनका छायाचित्र देखने के बाद भी मन में बसा रह जाता है। कभी रूडयार्ड किपलिंग ने सुख महल में दो दिन बिताए थे। अजय ने भी यही किया। जैतसागर झील और सुख महल पर प्रकृति की पड़ती रोषनी के निहित में गए और ठौड़-ठौड़ अपने कैमरे से उसे अंवेरा। ऐसा ही उनका लिया केषवराय पाटन मंदिर का वह विरल छायाचित्र भी है जिसमें मंदिर, उसका षिल्प सौन्दर्य पानी में रखी किसी चट्टान में मढ़ा हुआ जैसे हमसे बतियाता है। बाड़ौली के मंदिर समूहों के उनके छायाचित्रों में पत्थर पर उत्कीर्ण कला का सांगोपांग चितराम है। चंबल नदी किनारे स्थित भैसंरोडगढ़ के एक छायाचित्र में झरोखे से झांकते दृष्य में दूर बनी दीवार और बुर्ज के साथ पसरी हरियाली का सांगोपांग दृष्य आंखों में जैसे सदा के लिए बस जाता है।

जैसे किसी खोई हुई सभ्यता को हमने फिर से पा लिया है

बूंदी का किला यूं हम सभी ने देखा है पर राह से किले के दृष्य का अद्भुत छायाचित्र अजय ने छायांकन की अपनी कला से साकार किया है। यह ऐसा है जिसमें गढ़ में निहित दृष्य कोलाज प्राचीन किसी सभ्यता से जैसे हमारा साक्षात् कराता है। बारादरियां, छोटे-छोटे दरवाजे, सीढि़यां, रास्ते और चट्टानों में बिखरी पुरातनता को छायाचित्रों में एक साथ निहारते लगता है, जैसे किसी खोई हुई सभ्यता को हमने फिर से पा लिया है। आभानेरी की बावड़ी हो या फिर परवन नदी के किनारे स्थित शेरगढ़ के इतिहास को संजोती उनकी छायांकन दीठ-सभी को देखते लगता है अजय धीरे-धीरे गुम हो रही हमारी षिल्प संस्कृति और दृष्य में निहित मौन की सौन्दर्य संवेदना को अपने तई छायाचित्रों में व्याख्यायित ही तो करते हैं!


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