Thursday, November 27, 2014

देश की वह सितारा


सितारा देवी 
सच है! चमकता सितारा आसमां पर ही नहीं होता जमीं पर भी होता हैं। और सितारा देवी से बड़ा इसका और उदाहरण क्या होगा। देश में कथक के लोकप्रियकरण की नींव जिनने रखी, उनमें सितारा देवी अग्रणी रही। कथक की गतियों, बोलों और पढ़न्त का जो स्पेस वह रचती थी, वह अद्भुत था। आप उनके नृत्य की पुरानी कोई रिकाॅर्डिंग देख लीजिए, पाएंगे शास्त्रीयता को अंवेरते, परम्परा को सहेजते और सामयिकता की जीवंत करते सितारा देवी नृत्य में अवर्णनीय उत्साह, उमंग और ऊर्जा को जैसे ध्वनित करती। 
 मुझे लगता है, अंग-प्रत्यंग-उपांग में कथक को संवारने और लय के भांत के भांत के रूपक रचने का कार्य किसी ने हमारे यहां किया है तो वह सितारा देवी ही है। शास्त्र के साथ लोक की अनूठी संवेदना उनके पास थी। नृत्य में कहन का विरल लयात्मक अंदाज उनके पास था। उनके नृत्य में स्थापत्य की विविधता थी। कृष्ण लीलाओं की उनकी कथक प्रस्तुतियां को ही लें। देखते लगेगा, किसी एक कलाकार ने कृष्ण से जुड़े तमाम आख्यानों को अकेले अपने बूते भीतर की अपनी ऊर्जा से जीवंत किया है। याद करें, उनके ‘कालिया मर्दन’ नृत्य को। लगेगा, दृष्टि, शिर, ग्रीवा से वह कथा में निहित कहन को जैसे साक्षात् साकार कर रही है।  और यही क्यों, सूरदास की रचना ‘ठुमक चलत रामचन्द्र’ भी अद्भुत! यह सही है, अंत तक वह प्रस्तुति देती रही और इधर वय का असर भी साफ दिखने लगा था। पर चेहरे का उनका ओज और भाव-भंगिमाओं में निहित उत्साह से यह भी लगता कि वही ऐसी कलाकार हैं जो नृत्य के रूपाकारों में जीवन की उदात्ता को ढलती हुई उम्र्र में भी इस कदर खूबसूरती से रच सकती है। 
बहरहाल, दीपावली के दिन कोलकता में 1920 को यह महान नृत्यांगना जन्मी। पिता ने नामकरण किया धनलक्ष्मी। प्यार का नाम हुआ धन्नो। पर यही धन्नों बाद में कथक की प्रस्तुतियों से इस कदर चमकी कि पिता ने उन्हें सितारा कहना आरंभ कर दिया।  नृत्य में कहन के सौन्दर्य के बीज सितारा देवी में उनके अपने पिता सुखदेव महाराज ने ही बोये। वह संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान, नाट्यशास्त्र मर्मज्ञ और बनारस घराने के प्रसिद्ध कथक नर्तक, कथाकार थे। कथक में पंडित सुखदेव महाराज ने ही धार्मिक तत्वों की कभी नींव रखी थी। सितारा देवी ने कथक में शास्त्रीय ताने-बाने को बरकार रखते हुए भी परिवेश से जुड़ी संवेदना और समय के साथ हो रहे परिवर्तनों से उसे निरंतर समृद्ध किया। संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, पद्मश्री के बाद भारत सरकार ने जब उन्हें पद्मभूषण देना चाहा तो सितारा देवी ने उसे ठुकरा दिया। उनकी  चाह ‘भारत रत्न’ की थी।...और मुझे लगता है, इसकी वह असल हकदार थी भी। आखिर क्यों नहीं ‘भारत रत्न’ उन्हें नहीं दिया जाता जिन्होंने संगीत, नृत्य, चित्रकला में अपने अप्रतिम योगदान के जरिए भारतीय संस्कृति की जड़ों को सींचने का कार्य किया है! 



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