Friday, November 21, 2014

उत्सवधर्मिता से जुड़ा कला पर्व


आर्ट समिट का  शुभारम्भ अनुप्रिया ने की सामुहिक उत्साह की सुमधुर व्यंजना 
जयपुर पिछले कुछ दिनों लगातार कलाओं के रंगों से सराबोर रहा। इस मंगलवार को ‘जयपुर आर्ट समिट’ का समापन हो गया पर उसके रंग अभी भी फीजा में जैसे बिखरे पड़े हैं।  उत्सवधर्मिता की दीठ से कला का यह आयोजन किसी मेले और पर्व सरीखा ही था।

 पिछले वर्ष इसकी शुरूआत चंद कलाकारों की पहल से हुई थी और इस वर्ष यह सच में परवान चढ़ा। कोई काॅरपोट घराना नहीं, मुनाफे के बाजार का प्रयोजन नहीं, सरकार का बड़ा साथ नहीं फिर भी अच्छे उद्देश्य के लिए स्थानीय कलाकारों का मेल कैसे किसी दुरूह आयोजन को अंजाम दे सकता है-‘आर्ट समिट’ इसका उदाहरण है।  

बहुत से स्तरों पर जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल से यह कहीं अधिक सफल, सहज और आम जन की कला संवेदनाओं में रंग भरने वाला था। इस मायने में भी कि बाजार के रंगों से परे यहां संवेदना के सुर ध्वनित हो रहे थे। बाहर से आए कलाकार अंदर से प्रफुल्लित थे, कलाओं का आस्वाद करने वाली भीड़ के अंदर कहीं कोई बोझ नहीं था। फुर्सत थी और उत्सवधर्मिता का गान भी हर ओर, हर छोर था। हां, सस्ते प्रचार हथकंडे के लिए कला के नाम पर आस्था पर प्रहार करते अनर्गल प्रयोग के कलाकार की विकृत मानसिकता को छोड़ आयोजन काबिले तारीफ था।
जवाहर कला केंद्र में एक संस्थापन यह भी 
बहरहाल, एक निजी होटल में ‘आर्ट समिट’ के शुभारंभ की वह सुबह सुहानी जिसमें वायलिन पर राग बसंत की स्वरलहरियां छिड़ी। पता नहीं क्यों, वायलिन के सुर सदा ही एकाकीपन को व्यंजित करते मन के भीतर की व्यथा को बाहर निकालते ही प्रतीत होते रहे हैं। पर जैसे-जैसे वायलिन के सुरों का कारवां आगे बढ़ा, लगा वातावरण में बासंती रंगों को ध्वनित करते अनुप्रिया ने सामुहिक उत्साह की सुमधुर व्यंजना की है। 

देश-विदेश के एक दर्जन कलाकारों ने कला के इस पर्व में मूर्त-अमूर्त में कैनवस पर रंग-रेखाएं उकेरी तो कलादीर्घाओं में प्रदर्शित कलाकृतियां से कला के अतीत, वर्तमान और भविष्य की आहटें जैसे ध्वनित हो रही थी।  लगा, स्थानीय विषयों के साथ वैश्विक सरोकार तेजी से कला में बढ़े हैं। हां, संस्थापन में गंभीरता के साथ अनर्गल की भी भरमार कम नहीं देखने को मिली। कला फिल्मों की दीठ से आयोजन विश्व के बेहतरीन आयोजनों में शुमार किया जा सकता है। श्वेत-श्याम छायाचित्रों की प्रक्रिया के बहाने छायांकन के सौन्दर्य में रमे जीवन के स्पन्दन की हिमांशु व्यास की वृत्तचित्र व्यंजना अद्भुत थी। मन को मथने वाली। विनय शर्मा ने संस्थापन को नाटकीय रूप में रखा। पन्नों निर्मित पोषाक का उनका विचरण दर्शकांे के लिए कौतुक जगाने वाला था। हां, कला संवाद के अंतर्गत वक्ताओं ने क्या कुछ कहा, उनके सरोकारों पर उदासीनता ही अंत तक पसरी रही। 
कला संस्कृति विभाग के प्रमुख शासन सचिव शैलेन्द्र अग्रवाल ने आयोजन के शुभारंभ के दिन कला प्रोत्साहन के लिए सभी को मिलकर प्रयास की बात कही थी। सच भी है! सरकार, उद्यमी, कलाकार और आम जन यदि स्वयं पहल करे तो क्या नहीं हो सकता। ‘आर्ट समिट’ से बेहतर इसका और उदाहरण क्या होगा! 

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